Wi-Fi 8 की शुरू हो गई टेस्टिंग, वायर्ड नेटवर्क की तरह मिलेगा स्टेबल कनेक्शन, जानिए आपके लिए क्या बदलेगा

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<p style="text-align: justify;">नेटवर्किंग उपकरण बनाने वाली चीनी कंपनी TP-Link ने नेक्स्ट-जेन Wi-Fi 8 की टेस्टिंग शुरू कर दी है. TP-Link ने बताया कि उसने क्वालकॉम समेत दूसरी कंपनियों के साथ मिलकर बनाए गए प्रोटोटाइप डिवाइस से सफलतापूर्वक डेटा भेजा और रिसीव किया है. कंपनी का कहना है कि Wi-Fi 8 अब इंडस्ट्री कॉन्सेप्ट से निकलकर रियल-वर्ल्ड टेक्नोलॉजी बनने के करीब है. आइए विस्तार से जानते हैं कि इस टेक्नोलॉजी में क्या खास है और इसके आने से जिंदगी में क्या बदलाव होने जा रहा है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>क्या है Wi-Fi 8?</strong></p>
<p style="text-align: justify;">Wi-Fi 8 नेक्स्ट जनरेशन वायरलेस कनेक्टिविटी टेक्नोलॉजी है, जिस पर अभी काम चल रहा है. वाई-फाई के पुराने और मौजूदा वर्जन में सिर्फ टॉप स्पीड पर फोकस किया गया है, लेकिन नई जनरेशन में कनेक्शन को वायर्ड नेटवर्क की तरह स्टेबल और कंसिस्टेंट बनाने पर जोर दिया जा रहा है. अभी तक यह टेक्नोलॉजी अपने शुरुआती चरण में है और इसकी टेस्टिंग शुरू हुई है. नई टेक्नोलॉजी मौजूदा वर्जन की तुलना में कमजोर सिग्नल वाले इलाकों में भी 25 प्रतिशत तेज स्पीड प्रदान कर रही है. इसी तरह इसकी लेटेंसी कम है और इसमें कनेक्शन ड्रॉप की दिक्कत भी कम है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>Wi-Fi 8 आने से क्या बदल जाएगा?</strong></p>
<p style="text-align: justify;">TP-Link के ट्रायल में इस टेक्नोलॉजी के कोर सिग्नल और डेटा ट्रांसफर स्पीड वेरिफाई हो गई है. एक बार तैयार होने पर यह टेक्नोलॉजी तेज, भरोसेमंद और स्टेबल इंटरनेट कनेक्शन दे पाएगी. इसकी मदद से भीड़भाड़ वाले इलाकों और एक साथ कई डिवाइस कनेक्टेड होने पर भी तेज और स्टेबल स्पीड मिल पाएगी. इसे AI-पावर्ड सिस्टम, रोबोटिक्स और इंडस्ट्रियल ऑटोमेशन जैसे चीजों को हैंडल करने के लिए डिजाइन किया गया है.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>भारत में कब लॉन्च होगी Wi-Fi 8?</strong></p>
<p style="text-align: justify;">इस टेक्नोलॉजी को मार्च, 2028 तक फाइनल अप्रूवल मिलने की उम्मीद है. इसके बाद ही इस टेक्नोलॉजी सपोर्ट वाले डिवाइस मार्केट में आने शुरू होंगे. अगर भारत की बात करें तो यहां इस टेक्नोलॉजी को लॉन्च होने में और ज्यादा समय लग सकता है. इसके पीछे वजह यह है कि सरकार ने इस टेक्नोलॉजी के लिए जरूरी स्पेक्ट्रम रेंज के अलॉटमेंट को आगे खिसका दिया है.</p>
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