मार्क जुकरबर्ग को क्यों थामना पड़ा न्यूक्लियर प्लांट का हाथ, जानें क्या है फेसबुक, वॉट्सऐप चलाने वाली कंपनी मेटा का नया मिशन

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<p style="text-align: justify;">फेसबुक, इंस्टाग्राम और वॉट्सऐप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स चलाने वाली मेटा कंपनी ने अब एक ऐसा कदम उठाया है, जिसकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी. मेटा के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने अमेरिका की न्यूक्लियर एनर्जी कंपनी कॉन्स्टेलेशन एनर्जी के साथ एक बड़ी डील कर ली है. ये पहली बार है जब किसी बड़ी टेक कंपनी ने सीधे तौर पर किसी परमाणु ऊर्जा कंपनी से हाथ मिलाया है. लेकिन सवाल ये है कि आखिर सोशल मीडिया कंपनी को न्यूक्लियर पावर प्लांट से साझेदारी करने की जरूरत क्यों पड़ी?</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>डेटा सेंटर्स और AI की बढ़ती भूख</strong></p>
<p style="text-align: justify;">असल में मेटा का ये फैसला आने वाले समय की तैयारियों का हिस्सा है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और भारी-भरकम डेटा सेंटर्स को सुचारू रूप से चलाने के लिए बहुत ज्यादा बिजली की जरूरत होती है. अमेरिका में बीते दो दशकों में पहली बार बिजली की डिमांड में इतना बड़ा उछाल देखा गया है और इसके पीछे AI और टेक्नोलॉजी का बढ़ता इस्तेमाल है.</p>
<p style="text-align: justify;">मेटा आने वाले सालों में अपनी डिजिटल सेवाओं को बिना किसी रुकावट के जारी रखने के लिए बिजली की सप्लाई को लेकर पहले से ही तैयारियां कर रही है. यही वजह है कि कंपनी ने न्यूक्लियर एनर्जी प्लांट से जुड़ने का फैसला लिया है ताकि उन्हें भविष्य में बिजली की कोई कमी ना हो.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>सब्सिडी खत्म, मेटा बनी सहारा</strong></p>
<p style="text-align: justify;">कॉन्स्टेलेशन एनर्जी का यह न्यूक्लियर पावर प्लांट अमेरिका के इलिनोइस राज्य में है. अभी तक यह कंपनी सरकार से सब्सिडी लेकर काम कर रही थी क्योंकि न्यूक्लियर प्लांट्स से कार्बन फ्री बिजली बनती है. लेकिन साल 2027 के बाद ये सब्सिडी खत्म हो जाएगी। ऐसे में कंपनी को आर्थिक रूप से दिक्कत हो सकती थी.</p>
<p style="text-align: justify;">यहीं मेटा ने आगे बढ़कर हाथ थाम लिया. अब इस डील के जरिए मेटा कॉन्स्टेलेशन को सपोर्ट करेगी ताकि प्लांट 2027 के बाद भी बिना किसी अड़चन के बिजली बनाता रहे. इससे मेटा को भी अपने AI और डेटा सेंटर्स के लिए स्थिर और स्वच्छ बिजली मिलती रहेगी.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>मेटा की नजर अब डिफेंस सेक्टर पर भी</strong></p>
<p style="text-align: justify;">इतना ही नहीं, मेटा अब अमेरिकी सेना के लिए भी टेक्नोलॉजी तैयार करने जा रही है. मेटा ने एंड्रिल इंडस्ट्रीज नाम की कंपनी के साथ मिलकर वर्चुअल रियलिटी (VR) और ऑगमेंटेड रियलिटी (AR) डिवाइसेस बनाने की योजना बनाई है. इन डिवाइसेस में खास सेंसर और AI तकनीक का इस्तेमाल होगा, जिससे सैनिकों की सुनने और देखने की क्षमता बढ़ाई जा सकेगी.</p>
<p style="text-align: justify;">ये डिवाइसेस हेलमेट और चश्मों के रूप में तैयार हो सकती हैं, जो सैनिकों को छुपे हुए खतरे को जल्दी पहचानने और सही लक्ष्य साधने में मदद करेंगी.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>बिजली की जंग शुरू हो चुकी है</strong></p>
<p style="text-align: justify;">मेटा का यह कदम साफ दिखाता है कि आने वाला दौर सिर्फ सोशल मीडिया और एआई का नहीं, बल्कि बिजली और ऊर्जा के लिए जद्दोजहद का भी होगा. टेक कंपनियों को अब न सिर्फ अपने यूजर्स की चिंता है, बल्कि उनके ऐप्स और प्लेटफॉर्म्स को चलाने के लिए लगातार और साफ बिजली की जरूरत भी है. जुकरबर्ग का न्यूक्लियर पावर प्लांट से हाथ मिलाना इस बात का संकेत है कि टेक्नोलॉजी का भविष्य अब एनर्जी से जुड़ा हुआ है और जो कंपनियां पहले से तैयारी कर रही हैं, वही आने वाले वक्त में टिक पाएंगी.</p>

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