World Cup Final 2023 Know How Hawkeye And Ultra Edge Technology Work

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भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच आज अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में वर्ल्ड कप का फाइनल मुकाबला खेला जाना है. करीब एक लाख से ज्यादा दर्शक ग्राउंड में मैच को देखेंगे. वहीं, डिजिटल माध्यम से 5 करोड़ से भी ज्यादा लोगों के जुड़ने की उम्मीद है. भारत के लिए ये एक बड़ा मैच है और इस मैच को देखने कई बड़ी हस्तियां पहुंच रही हैं. मैच से पहले कई तरह के स्पेशल कार्यक्रम भी आयोजित किये जाएंगे. 

अक्सर अपने क्रिकेट मैच के दौरान देखा होगा कि जब प्लेयर्स फिल्ड अंपायर के डिसीजन से संतुष्ट नहीं होते या अंपायर कई बार प्लेयर की कॉल पर कोई निर्णय नहीं देते तो टीम डीआरएस लेती है. डीआरएस के तहत डिसीजन थर्ड अंपायर के द्वारा दिया जाता है और इसमें हॉक-आई और अल्ट्रा एज टेक्नोलॉजी की मदद ली जाती है. आज हम आपको एकदम सरल शब्दों में ये बताएंगे कि ये टेक्नोलॉजी कैसे काम करती है. जिन लोगों को नहीं पता कि डीआरएस का मतलब क्या है तो ये डिसीजन रिव्यू सिस्टम है जो फील्ड अंपायर के निर्णय को चुनौती होती है.

कैसे काम करती है अल्ट्रा एज टेक्नोलॉजी?

अल्ट्रा-एज टेक्नोलॉजी में ये पता लगाया जाता है की गेंद फेंके जाने के बाद ये बल्ले से टच हुई है या नहीं. इस टेक्नोलॉजी में स्टंप्स के पीछे एक एडवांस माइक लगाया जाता है जो बल्लेबाज और विकेटकीपर के आसपास की हर छोटी से छोटी आवाज को रिकॉर्ड करता है. यदि बॉल बल्ले या बैट्समैन के शरीर से टच होती है तो ये माइक तुरंत उस आवाज को रिकॉर्ड कर लेता है और फिर नॉइस कैंसिलेशन की मदद से बेकार की आवाज को हटा देता है और क्लियर आउटपुट सिस्टम में प्रदान करता है जिससे ये पता लग पाता है कि बॉल वाकई में बल्ले से टच हुई है या नहीं. इसी के आधार पर फिर अंपायर अपना डिसीजन देते हैं.

क्या है Hawkeye टेक्नोलॉजी?

इस टेक्नोलॉजी में 6 एडवांस्ड कैमरा की मदद ली जाती है जो ग्राउंड के आसपास मौजूद होते हैं. ये कैमरा गेंदबाज के बॉल फेंकने के बाद उसके मूवमेंट को ट्रैक करते हैं. यह टेक्नोलॉजी ट्रायंगुलेशन प्रिंसिपल पर काम करती है. सरल भाषा में कहें तो कैमरा बॉल के हर मूवमेंट को कैप्चर करते हैं और फिर एक खास तरह के एल्गोरिथम से बॉल की मूवमेंट का 3D स्ट्रक्चर तैयार किया जाता है जिससे इसके मूवमेंट के बारे में पता लगता है.

आपने अक्सर क्रिकेट मैच में अल्ट्रा एज के बाद बॉल ट्रैकिंग नाम का शब्द सुना होगा. इसी बॉल ट्रैकिंग के आधार पर अंपायर ये देख पाते हैं कि बॉल बैट्समैन के पैड से होकर स्टंप्स में लगेगी या नहीं. 

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