<p style="text-align: justify;">जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) के पहलगाम (Pahalgam) में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है. 27 मासूमों की जान गई जिससे पूरा भारत आक्रोश में है और सरकार के कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहा है. सुरक्षा एजेंसियां तेजी से जांच में जुट गई हैं. इस बार सिर्फ हथियार या ठिकाने ही नहीं, बल्कि एक और चीज एजेंसियों के रडार पर है, वह है डिजिटल फुटप्रिंट (Digital Footprint). जी हां, यही वो तकनीक है जिसकी मदद से अब ये पता लगाया जा रहा है कि आतंकी हमले में शामिल लोग पाकिस्तान के किन-किन ठिकानों से जुड़े हुए थे.</p>
<p style="text-align: justify;">लेकिन अब आपके दिमाग में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर ये डिजिटल फुटप्रिंट होता क्या है? और इसकी मदद से आतंकियों के नेटवर्क का कैसे भंडाफोड़ हो रहा है? चलिए, इसे आसान भाषा में समझते हैं.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>क्या है Digital Foot Print</strong></p>
<p style="text-align: justify;">जैसे रेत या मिट्टी पर चलने से पैरों के निशान छूट जाते हैं, ठीक वैसे ही जब हम इंटरनेट पर कुछ करते हैं, जैसे गूगल पर कुछ सर्च करना, फेसबुक पर कोई पोस्ट डालना, वेबसाइट्स खोलना या ऐप इस्तेमाल करना. तो हमारे इन सभी कामों का एक डिजिटल रिकॉर्ड बनता है. यही होता है डिजिटल फुटप्रिंट.</p>
<p style="text-align: justify;">इन निशानों से कोई ये जान सकता है कि आपने क्या देखा, कब देखा, कहां क्लिक किया और किससे बात की. अब अगर यही तकनीक आतंकियों की ऑनलाइन एक्टिविटी पर लगाई जाए, तो क्या-क्या सामने आ सकता है, इसका आप अंदाजा लगा ही सकते हैं. </p>
<p style="text-align: justify;"><strong>कितने तरह के होते हैं Digital Footprint</strong></p>
<p style="text-align: justify;">डिजिटल फुटप्रिंट दो तरह के होते हैं. एक वो, जिसे हम जानबूझकर इंटरनेट पर छोड़ते हैं, जैसे कि किसी पोस्ट या कमेंट का करना, और दूसरा वो जो बिना हमारी जानकारी के हमारे हर ऑनलाइन गतिविधि से जुड़ा होता है. उदाहरण के तौर पर, यह जानकारी होती है कि हम किस वेबसाइट पर गए, कब क्लिक किया, या किस लिंक पर माउस रखाय. इस तरह का डेटा बिना हमें बताए रिकॉर्ड हो जाता है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>कैसे मिला आतंकियों का पाकिस्तान से लिंक?</strong></p>
<p style="text-align: justify;">पहलगाम में हुए हमले के बाद जब एजेंसियों ने मौके से बरामद डिवाइस और कम्यूनिकेशन डिवाइसेज की जांच शुरू की, तो उनमें कुछ ऐसे संकेत मिले जो भारत की सीमा पार पाकिस्तान तक पहुंचते थे. </p>
<p style="text-align: justify;">जांच में पता चला कि आतंकियों ने एन्क्रिप्टेड कम्युनिकेशन टूल्स का इस्तेमाल किया था. यानी ऐसे ऐप और तकनीकें जिनसे बातचीत ट्रैक करना मुश्किल होता है. लेकिन भारत की खुफिया एजेंसियों ने डिजिटल फुटप्रिंट की मदद से ये पकड़ लिया कि इन आतंकियों की बातचीत मुजफ्फराबाद और कराची जैसे पाकिस्तानी इलाकों में मौजूद कुछ खास ठिकानों से हो रही थी.</p>
<p style="text-align: justify;">इन जगहों को सुरक्षा एजेंसियां पहले से ही ‘सेफ हाउस; के तौर पर चिन्हित कर चुकी थीं, जहां से आतंकी गतिविधियों को संचालित किया जाता है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>क्यों जरूरी है डिजिटल फुटप्रिंट की जानकारी?</strong></p>
<p style="text-align: justify;">आज के दौर में सिर्फ हथियार और गोलियों से नहीं, बल्कि डेटा से भी जंग लड़ी जाती है. डिजिटल फुटप्रिंट एक तरह से ऑनलाइन दुनिया में छिपे हुए सबूतों की तरह होते हैं. इन्हें पकड़ना मुश्किल हो सकता है, लेकिन एक बार हाथ लग जाएं तो बड़ी-बड़ी साजिशों की परतें खुल जाती हैं.</p>
<p style="text-align: justify;">यही वजह है कि जम्मू कश्मीर में हुए इस हमले में केवल धमाके और गोलियों की जांच नहीं हो रही, बल्कि उस डेटा की भी तह तक जाया जा रहा है, जिसे आतंकी अपने पीछे छोड़ गए थे.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>आम लोग भी छोड़ते हैं डिजिटल निशान</strong></p>
<p style="text-align: justify;">जरूरी नहीं कि सिर्फ टेरेरिस्ट ही डिजिटल फुटप्रिंट छोड़ते हैं. आप जब भी किसी वेबसाइट पर जाते हैं, किसी पोस्ट पर लाइक करते हैं या कुछ गूगल पर सर्च करते हैं तो आप भी डिजिटल दुनिया में अपनी छाप छोड़ रहे होते हैं. यही कारण है कि कई बार आपने देखा होगा आपने एक बार मोबाइल सर्च किया और फिर हर जगह उसका ऐड दिखने लग जाता है. </p>
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