<p style="text-align: justify;"><strong>Cloud Seeding:</strong> दुनिया के कई देश अब प्राकृतिक बारिश पर निर्भर रहने की बजाय कृत्रिम वर्षा (Artificial Rain) का सहारा ले रहे हैं. इसे क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) कहा जाता है एक ऐसी तकनीक जिसमें रासायनिक तत्वों या साल्ट फ्लेयर्स की मदद से बादलों में नमी बढ़ाई जाती है, ताकि बारिश कराई जा सके. यह तकनीक सूखा राहत, कृषि, जल प्रबंधन और प्रदूषण नियंत्रण जैसे कई क्षेत्रों में मददगार साबित हो रही है. आइए जानते हैं किन-किन देशों ने इस हाई-टेक बारिश को अपनाया है.</p>
<h2 style="text-align: justify;">चीन</h2>
<p style="text-align: justify;">चीन इस समय दुनिया में सबसे आगे है जब बात आती है आर्टिफिशियल बारिश की. यहां सरकार ने लक्ष्य रखा है कि 2025 तक करीब 55 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को इस तकनीक से कवर किया जाएगा. चीन में AI आधारित मौसम पूर्वानुमान, सैकड़ों एयरक्राफ्ट और रॉकेट्स की मदद से बारिश कराई जा रही है. यह तकनीक सूखे से राहत, कृषि सिंचाई और बड़े इवेंट्स के दौरान मौसम नियंत्रण के लिए इस्तेमाल होती है.</p>
<h2 style="text-align: justify;">संयुक्त अरब अमीरात (UAE)</h2>
<p style="text-align: justify;">UAE ने 1982 से क्लाउड सीडिंग प्रोग्राम शुरू किया था. यहां की सरकार AI, ड्रोन और हाइग्रोस्कोपिक साल्ट फ्लेयर्स जैसी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करती है. इस टेक्नोलॉजी का मकसद है बारिश की मात्रा बढ़ाना और मरुस्थली क्षेत्रों में नमी बनाए रखना.</p>
<h2 style="text-align: justify;">अमेरिका (USA)</h2>
<p style="text-align: justify;">संयुक्त राज्य अमेरिका में क्लाउड सीडिंग काफी व्यापक है, खासकर कैलिफ़ोर्निया, कोलोराडो और टेक्सास जैसे सूखा-प्रवण राज्यों में. यहां इस तकनीक से स्नोपैक बढ़ाने, पानी की सप्लाई सुधारने और खेती को सहारा देने का काम किया जाता है.</p>
<h2 style="text-align: justify;">भारत</h2>
<p style="text-align: justify;">भारत में क्लाउड सीडिंग का प्रयोग सूखे के समय और कृषि सिंचाई के लिए किया जाता है. महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में यह तकनीक निजी कंपनियों और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के सहयोग से अपनाई गई है. हाल ही में IIT कानपुर ने दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में सिल्वर आयोडाइड फ्लेयर्स के साथ दो ट्रायल किए, हालांकि दोनों में बारिश नहीं हुई.</p>
<h2 style="text-align: justify;">थाईलैंड</h2>
<p style="text-align: justify;">थाईलैंड ने 1950 के दशक में ‘Royal Rainmaking Project’ की शुरुआत की थी जो आज भी दुनिया के सबसे पुराने और सफल क्लाउड सीडिंग कार्यक्रमों में गिना जाता है. इसका इस्तेमाल कृषि उत्पादन बढ़ाने, प्रदूषण घटाने और जल संसाधन प्रबंधन के लिए किया जाता है.</p>
<h2 style="text-align: justify;">रूस</h2>
<p style="text-align: justify;">रूस में कृत्रिम बारिश का इस्तेमाल कृषि, सूखा राहत और जल प्रबंधन के साथ-साथ जंगल की आग बुझाने के लिए भी किया जाता है. यह देश अपने शुष्क क्षेत्रों में क्लाइमेट बैलेंस बनाए रखने के लिए इस तकनीक पर निर्भर है.</p>
<h2 style="text-align: justify;">ऑस्ट्रेलिया</h2>
<p style="text-align: justify;">ऑस्ट्रेलिया में क्लाउड सीडिंग का उपयोग कृषि और जल प्रबंधन के अलावा हाइड्रोपावर उत्पादन बढ़ाने के लिए भी किया जा रहा है. सूखे समय में यह तकनीक जल उपलब्धता बनाए रखने में मदद करती है.</p>
<h2 style="text-align: justify;">सऊदी अरब</h2>
<p style="text-align: justify;">सऊदी अरब ने 2022 में पहली बार क्लाउड सीडिंग शुरू की थी. इसका उद्देश्य है रेगिस्तानी क्षेत्रों में नमी बढ़ाना, रेगिस्तान फैलाव (Desertification) को रोकना और जल संसाधनों की स्थिति में सुधार लाना.</p>
<h2 style="text-align: justify;">इंडोनेशिया</h2>
<p style="text-align: justify;">इंडोनेशिया में यह तकनीक बारिश के मौसम में बाढ़ के खतरे को कम करने और जल संसाधनों के बेहतर उपयोग के लिए अपनाई गई है. यहां सरकार नियमित रूप से इस तकनीक का इस्तेमाल करती है ताकि मौसमी असंतुलन को संभाला जा सके.</p>
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