<p style="text-align: justify;"><strong>GPS Spoofing:</strong> आज की डिजिटल दुनिया जिन सिस्टम पर चलती है, उनमें से ज्यादातर ऐसी तकनीकों पर आधारित हैं जिनके बारे में हम सोचते भी नहीं. वर्षों से GPS सिग्नल स्थिर और भरोसेमंद रहे लेकिन पिछले एक साल में इसमें खतरनाक तरह की गड़बड़ियाँ सामने आने लगी हैं. दिल्ली, ब्लैक सी और बाल्टिक क्षेत्र के ऊपर उड़ रहे विमानों में अचानक नेविगेशन सिस्टम का वास्तविक लोकेशन से सैकड़ों किलोमीटर दूर दिखना यह सब GPS जामिंग और स्पूफिंग की वजह से हो रहा है. हजारों घटनाएं साबित कर चुकी हैं कि दुनिया का बड़ा हिस्सा इस अदृश्य तकनीक पर गंभीर रूप से निर्भर है.</p>
<h2 style="text-align: justify;">GPS क्या है और क्यों पूरी दुनिया इसका इस्तेमाल करती है?</h2>
<p style="text-align: justify;">GPS यानी Global Positioning System, अमेरिका द्वारा संचालित 24 से अधिक सैटेलाइट्स का समूह है जो लगातार समय और लोकेशन का सटीक डेटा भेजते हैं. फोन, विमान, जहाज़, इंटरनेट टावर सभी इन सैटेलाइट्स से प्राप्त सिग्नल के आधार पर अपनी लोकेशन और समय निर्धारित करते हैं.</p>
<p style="text-align: justify;">1970 के दशक में सैन्य इस्तेमाल के लिए शुरू हुआ GPS 1995 में पूरी तरह ऑपरेशनल हुआ. आज यह दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण नेविगेशन तकनीक बन चुका है जिसका वार्षिक संचालन खर्च अरबों डॉलर है.</p>
<h2 style="text-align: justify;">आधुनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर GPS के बिना क्यों नहीं चल सकता?</h2>
<p style="text-align: justify;">GPS अकेला सिस्टम नहीं. रूस का GLONASS, यूरोप का Galileo और चीन का BeiDou मिलकर पूरे GNSS नेटवर्क का हिस्सा हैं. इनका सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है टाइमिंग.</p>
<ul style="text-align: justify;">
<li>टेलीकॉम नेटवर्क</li>
<li>बैंकिंग और स्टॉक एक्सचेंज</li>
<li>पावर ग्रिड</li>
<li>डेटा सेंटर</li>
</ul>
<p style="text-align: justify;">ये सभी माइक्रोसेकंड स्तर की सिंक्रोनाइज़ेशन पर चलते हैं जो GPS देता है. एविएशन, शिपिंग, कृषि, लॉजिस्टिक्स और वैज्ञानिक रिसर्च हर क्षेत्र में GPS की रीढ़ जैसी भूमिका है.</p>
<h2 style="text-align: justify;">युद्ध क्षेत्रों में GPS स्पूफिंग का असर</h2>
<p style="text-align: justify;">GPS मूल रूप से सैन्य जरूरतों के लिए बनाया गया था. यूक्रेन-रूस युद्ध ने दिखा दिया है कि GPS कितना उपयोगी और साथ ही कितना कमजोर भी है. दोनों देशों ने बड़ी मात्रा में जामिंग और स्पूफिंग का इस्तेमाल किया जिससे ड्रोन की दिशा भटक गई, मिसाइलों की गाइडेंस प्रभावित हुई, संचार सिस्टम बाधित हुए.</p>
<p style="text-align: justify;">IATA के अनुसार, 2024 में ऐसे 4.3 लाख से ज्यादा मामले सामने आए 2023 के मुकाबले 62% की वृद्धि. भारत भी इससे अछूता नहीं रहा. दिल्ली एयरपोर्ट और जम्मू रूट पर GPS स्पूफिंग की घटनाओं ने DGCA को सख्त रिपोर्टिंग नियम लागू करने पर मजबूर किया.</p>
<h2 style="text-align: justify;">दुनिया GPS को सुरक्षित कैसे बना रही है?</h2>
<p style="text-align: justify;">लगातार बढ़ती स्पूफिंग के बाद कई देश बैकअप सिस्टम बना रहे हैं अमेरिका eLoran, LEO सैटेलाइट और फाइबर-आधारित टाइमिंग नेटवर्क पर भारी निवेश</p>
<p style="text-align: justify;">ब्रिटेन — राष्ट्रीय eLoran नेटवर्क के लिए 200+ मिलियन डॉलर</p>
<p style="text-align: justify;">ऑस्ट्रेलिया — जाम-प्रतिरोधी क्वांटम सेंसर और सेल्स्टियल नेविगेशन</p>
<p style="text-align: justify;">यूरोप व एशिया — LEO PNT कॉन्स्टेलेशन और उन्नत इनर्शियल सिस्टम</p>
<p style="text-align: justify;">चीन और रूस भी अपने मल्टी-लेयर PNT नेटवर्क का विस्तार कर रहे हैं.</p>
<h2 style="text-align: justify;">क्या GPS का युग खत्म हो रहा है?</h2>
<p style="text-align: justify;">बिल्कुल नहीं. GPS आज भी 100 बिलियन डॉलर से ज्यादा की वैश्विक अर्थव्यवस्था का आधार है. लेकिन दुनिया अब एकल सिस्टम पर निर्भर रहने के बजाय लेयर्ड, मल्टी-सिस्टम नेविगेशन अपना रही है ताकि किसी एक तकनीक में गड़बड़ी आने पर पूरी दुनिया न रुक जाए.</p>
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GPS Spoofing कैसे बन गया वैश्विक खतरा? जानिए दुनिया भर के देश कैसे कर रहे हैं इसका मुकाबला
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